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कविता

जिनिगी क कहानी

रामप्रकाश शुक्ल "निर्मोही"


अँजुरी में भरल जइसे पानी
जिनिगी क एतनै कहानी

जिनिगी क चिट्ठी घूमैं शहरि-शहरिया
बचपन जवानी आ बुढ़ापा के मोहरिया
     लगि-लगि पहुँचै ठेकानी

सुख-दुख-हँसी-खुशी शादी-ब्याह-गवना
जिनिगी के मेला में बिकाला ई खेलवना
     कीनि-कीनि खरची खटानी

जिनिगी-पतंग के उड़ावै होनहरवा
एक दिन कटि बिखराई कागज-डोरवा
     पाँचो तत्त लुटिहैं कमानी

समय क समुंदर प्रान पानी भरल गगरी
कहियो फुटी त बिखराइ जाई सगरी
     पनिया से मिलि जाई पानी

कबहुँ घटावल करत कबो जोड़वा
बेटी के बियाहे जइसे बपई के गोड़वा
     आइसे थकलि जिनगानी


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